बुधवार, 3 जुलाई 2024

मूर्खा यत्र अर्चन्ति विदुषाञ्च निरादरः। त्रीणि आपदागन्ति, दुर्भिक्षं लुण्टञ्च दर:॥


-जहाँ मूर्ख और ठग पूजे जाते हैं और विद्वानों का अनादर होता है।वहाँ तीन आपदाऐं आती हैं भुखमरी,लूटपाट और और चारो तरफ आतंक।१।
जो साधना करने वाले नहीं हैं वे धर्म विवेचना
में  अन्धे के समान होते है। उनको फिर ठग लोग अन्धों में काणे(काने) व्यक्ति के समान उपदेश देते हैं।२।
उन यज्ञ अनुष्ठानों का क्या प्रयोजन? जिनके करने से मन का शुद्धिकरण और आत्मा का बोध न होता हो।३।
धर्म की आड़ में जो लोग स्त्रीयों  के रूप -सौन्दर्य का कामुक भाव से चिन्तन करते हैं। वे अगले जन्म में हिजड़े (किन्नर) होते हैं।४।

दाम्भिकेनात्मना धार्मिकत्वस्य  अनुभूयते।
 रूढिनो मूढानां रूढीणां पाशा प्रस्यूयते।।५।


आजकल कथावाचक एवं भजन-गायक धन आदि के लोभवश भगवत कथाओं और भगवन्नाम को बेचने लगे हैं, वे अवश्य नरकगामी होंगे तथा कराने वाले आयोजको के भी ले जाएंगे।५।
"
( कृष्ण वचनामृतम्-)@

ईश्वर वेदों से भी परे है वह यज्ञ आदि कर्म काण्डों से भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। कोई नीति उसे प्राप्त करने का माध्यम नहीं। वह प्रभु केवल यौगिक क्रियाओं द्वारा शुद्ध किये गये अन्त:करण ( मन बुद्धि-) से ही जाना जा सकता है।१।

"कृष्ण: परं ज्ञानं कृष्ण: परं तप: स: साधनया प्रतीयते।
भक्तानां वाणीभिरुच्चारित
सो भासयति गीते पुनीते।।२।
अनुवाद-
कृष्ण परं ज्ञान हैं वह परं तप भी हैं। उन्हें मन की साधना के द्वारा अनुभव किया जा सकता है। वह कृष्ण भक्तों की वाणी से उच्चारित ( गाये -गये) भजनों मे प्रकाशित होते हैं।२।


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