गुरुवार, 20 जून 2024

"राधापरिवार- और राधा जी का शास्त्रीय परिचय-


सत्रहवीं सदी के बंगाल से प्राप्त ग्रन्थ वासुदेव रहस्य राधतन्त्र के षष्ठ पटल में  राधा की प्रतिरूपा( छाया) वृन्दा की सास का नाम जटिला और पति का नाम अभिमन्युक लिखा है। कुटिला ननद और वृन्दा के देवर का नाम दुर्मद है।

श्वश्रूस्तु जटिला ख्याता पतिर्म्मान्योऽतिमन्युकः ॥ ननान्दा कुटिलानाम्नी देवरो दुर्म्मदाभिधः ।
इति वासुदेवरहस्ये राधातन्त्रे षष्ठः पटलः ॥
***************************

 पौर्णमासी भगवती सर्व्वसौभाग्यवर्द्धिनी । पितामहो महीभानुर्व्विन्दुर्म्मातामहो मतः ॥

 मातामहीपितामह्यौ सुखदामोक्षदाभिधे । रत्नभानुः स्वभानुश्च भानुश्च भ्रातरः पितुः ॥

 भद्रकीर्त्तिर्म्महाकीर्त्तिः कीर्त्तिचन्द्रश्च मातुलः  स्वसा कीर्त्तिमती मातुर्भानुमुद्रा पितृष्वसा ॥

 पितृष्वसृपतिः काश्यो मातृष्वसृपतिः कृशः  मातुली मेनकामेना षष्ठी धात्री तु धातकी ॥

 श्रीदामा पूर्वज भ्राता कनिष्ठानङ्गमञ्जरी  परमप्रेष्ठसख्यस्तु ललिता च विशाखिका ॥

 विचित्रा चम्पकलता रङ्गदेवी सुदेविका ।
तुङ्गवेद्यङ्गलेखा च इत्यष्टौ च गणा मताः ॥

प्रियसख्यः कुरङ्गाक्षी मण्डली मानकुण्डला । मालती चन्द्रलतिका माधवामदनालसा ॥

मञ्जुमेया शशिकला सुमध्या मधुमेक्षणा । 
कमला कामलतिका कान्तचूडा वराङ्गना ॥

मधूरी चन्द्रिका प्रेममञ्जरी तनुमध्यमा । कन्दर्पसुन्दरी मञ्जुवेशी चाद्यास्तु कोटिशः ॥

रक्ताजीवितयाख्याता कलिका केलिसुन्दरी । 
पृष्ठ ४/१४०कादम्बरी शशिमुखी चन्द्ररेखा प्रियंवदा ॥ 
मदोन्मादा मधुमती वासन्ती कलभाषिणी । रत्नवेणी मालवती कर्पूरतिलकादयः ॥ 

एता वृन्दावनेश्वर्य्याः प्रायः सारूप्यमागताः । नित्यसख्यस्तु कस्तूरी मनोज्ञा मणिमञ्जरी ॥

 सिन्दूरा चन्दनवती कौमुदी मुदितादयः । काननादिगतास्तस्या विहारार्थं कला इव ॥ 

अथ तस्याः प्रकीर्त्त्यन्ते प्रेयस्यः परमाद्भुताः ।
वनादित्योप्युरुप्रेमसौन्दर्य्यभरभूषिताः ॥

चन्द्रावली च पद्मा च श्यामा सैका च भद्रिका । तारा चित्रा च गन्धर्व्वी पालिका चन्द्रमालिका ॥

मङ्गला विमला नीला भवनाक्षी मनोरमा । कल्पलता तथा मञ्जुभाषिणी मञ्जुमेखला ॥

कुमुदा कैरवी पारी शारदाक्षी विशारदा । 
शङ्करी कुसुमा कृष्णा सारङ्गी प्रविलाशिनी ॥

तारावती गुणवती सुमुखी केलिमञ्जरी । हारावली चकोराक्षी भारती कामिनीति च ॥

आसां यूथानि शतशः ख्यातान्यन्यानि सुभ्रुवाम्  लक्षसंख्यास्तु कथिता यूथे यूथे वराङ्गनाः ॥

मुख्यास्तु तेषु यूथेषु कान्ताः सर्व्वगुणोत्तमाः । राधा चन्द्रावली भद्रा श्यामला पालिकादयः ॥

जन्मनाम्नाथ सा ख्याता मधुमासे विशेषतः । पुष्यर्क्षे च नवम्यां वै शुक्लपक्षे शुचिस्मिते ॥

जाता राधा महेशानी स्वयं प्रकृतिपद्मिनी । 
तासु रेमे महेशानि स्वयं कृष्णः शुचिस्मिते । 
रमणं वासुदेवस्य मन्त्रसिद्धेस्तु कारणम् ॥

 देव्युवाच । भो देव तापसां श्रेष्ठ विस्ताराद्वद ईश्वर । कथं सा पद्मिनी राधा सदा पद्मवने स्थिता ॥ 

पितरं मातरं त्यक्त्वा आत्मतुल्यां ससर्ज्ज सा । पद्ममाश्रित्य देवेश वृन्दावनविलासिनी । सदाध्यास्ते महेशानि एतद्गुह्यं वद प्रभो ! ॥ “

इति वासुदेवरहस्ये राधातन्त्रे सप्तमः पटलः॥

अब इसी प्रकरण की समानता के लिए  देखें नीचे 


अनुवाद:- श्री राधा के पिता वृषभानु वृष राशि में स्थित भानु( सूर्य ) के समान  उज्ज्वल हैं।१६८-(ख)

श्री राधा जी की माता का नाम कीर्तिदा है। ये पृथ्वी पर रत्नगर्भा- के नाम से प्रसिद्ध हैं।१६९।(क)


राधा जी के पिता का नाम महीभानु तथा नाना का नाम इन्दु है। राधा जी दादी का नाम सुखदा और नानी का नाम मुखरा  है।१७०।(क)



अनुवाद:-

अनुवाद:- श्रीराधा जी की माता की बहिन का नाम कीर्तिमती,और भानुमुद्रा पिता की बहिन ( बुआ) का नाम है। फूफा का नाम "काश और मौसा जी का नाम कुश है।

अनुवाद:- श्री राधा जी के बड़े भाई का नाम श्रीदामन्- तथा छोटी बहिन का नाम श्री अनंगमञ्जरी है।१७३।(क)
"राधा जी की  प्रतिरूपा( छाया) वृन्दा जो ध्रुव के पुत्र केदार की पुत्री है उसके ससुराल पक्ष के सदस्यों के नाम भी बताना आवश्यक है। वह राधा के अँश से उत्पन्न राधा के ही समान रूप ,वाली गोपी है। वृन्दावन नाम उसी के कारण प्रसिद्ध हो जाता है। रायाण गोप का विवाह उसी वृन्दावन के साथ होता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के श्रीकृष्ण जन्मखण्ड के अध्याय-(86) में श्लोक संख्या134-से लगातार 143 तक वृन्दा और रायाण के विवाह ता वर्णन है। 


रायाणस्य परिणीता वृन्दा वृन्दावनस्य अधिष्ठात्री ।इयं केदारस्य सुता  कृष्णाञ्शस्य भक्ते: सुपात्री। १।

ब्रह्मवैवर्तपुराणस्य श्रीकृष्णजन्मखण्डस्य        षडाशीतितमोऽध्यायस्य अनतर्निहिते । सप्तत्रिंशताधिकं शतमे श्लोके रायाणस्य पत्नी वृन्दया: वर्णनमस्ति।।२।

******************
उवाच वृन्दां भगवान्सर्वात्मा प्रकृतेः परः ।१३४
श्रीभगवानुवाच-
त्वयाऽऽयुस्तपसा लब्धं यावदायुश्च ब्रह्मणः ।
तदेव देहि धर्माय गोलोकं गच्छ सुन्दरि ।१३५ ।
तन्वाऽनया च तपसा पश्चान्मां च लभिष्यसि ।
पश्चाद्गोलोकमागत्य वाराहे च वरानने ।१३६ ।
*****************
मां लभिष्यसि रासे च गोपीभी राधया सह ।
राधा श्रीदामशापेन वृषभानसुता यदा ।१३८।
सा चैव वास्तवी राधा त्वं च च्छायास्वरुपिणी 
विवाहकाले रायाणस्त्वां च च्छायां ग्रहीष्यति। १३९।
त्वां दत्त्वा वास्तवी राधा साऽन्तर्धाना भविष्यति ।
राधैवेति विमूढाश्च विज्ञास्यन्ति ।
च गोकुले ।१४० ।
स्वप्ने राधापदाम्भोजं नारि पश्यन्ति बल्लवाः ।
स्वयं राधा मम क्रोडे छाया वृन्दा रायाणकामिनी ।१४१।
विष्णोश्च वचनं श्रुत्वा ददावायुश्च सुन्दरी ।
उत्तस्थौ पूर्ण धर्मश्च तप्तकाञ्चनसन्निभः ।।
पूर्वस्मात्सुन्दरः श्रीमान्प्रणनाम परात्परम् । १४२।
वृन्दोवाच
देवाः शृणुत मद्वाक्यं दुर्लङ्घ्यं सावधानतः ।
न हि मिथ्या भवेद्वाक्यं मदीयं च निशामय ।१४३ ।
उपर्युक्त संस्कृत श्लोकों का नीचे अनुवाद देखें-

***********************************
अनुवाद:- तब भगवान कृष्ण  जो सर्वात्मा एवं प्रकृति से परे हैं; वृन्दा से बोले।

श्रीभगवान ने कहा- सुन्दरि! तुमने तपस्या द्वारा ब्रह्मा की आयु के समान आयु प्राप्त की है। 

वह अपनी आयु तुम धर्म को दे दो और स्वयं गोलोक को चली जाओ। 

वहाँ तुम तपस्या के प्रभाव से इसी शरीर द्वारा मुझे प्राप्त करोगी।
सुमुखि वृन्दे ! गोलोक में आने के पश्चात वाराहकल्प में  हे वृन्दे !  तुम  पुन:  राधा की  वृषभानु की कन्या राधा की छायाभूता  होओगी। 
उस समय मेरे कलांश से ही उत्पन्न हुए रायाण गोप ही तुम्हारा पाणिग्रहण करेंगे।

फिर रासक्रीड़ा के अवसर पर तुम गोपियों तथा राधा के साथ मुझे पुन: प्राप्त करोगी।

*****************************
स्पष्ट हुआ कि रायाण गोप का विवाह मनु के पौत्र केदार की पुत्री वृन्दा " से हुआ था।  जो राधाच्छाया के रूप में  व्रज में उपस्थित थी।

जब राधा श्रीदामा के शाप से वृषभानु की कन्या होकर प्रकट होंगी, उस समय वे ही वास्तविक राधा रहेंगी।

हे वृन्दे ! तुम तो उनकी छायास्वरूपा होओगी। विवाह के समय वास्तविक राधा तुम्हें प्रकट करके स्वयं अन्तर्धान हो जायँगी और रायाण गोप तुम छाया को ही  पाणि-ग्रहण करेंगे;

परंतु गोकुल में मोहाच्छन्न लोग तुम्हें ‘यह राधा ही है’- ऐसा समझेंगे। 
___________________________
उन गोपों को तो स्वप्न में भी वास्तविक राधा के चरण कमल का दर्शन नहीं होता; क्योंकि स्वयं राधा मेरी  हृदय स्थल में रहती हैं !

इस प्रकार भगवान कृष्ण के वचन के सुनकर सुन्दरी वृन्दा ने धर्म को अपनी आयु प्रदान कर दी। फिर तो धर्म पूर्ण रूप से उठकर खड़े हो गये।

उनके शरीर की कान्ति तपाये हुए सुवर्ण की भाँति चमक रही थी और उनका सौंदर्य पहले की अपेक्षा बढ़ गया था। तब उन श्रीमान ने परात्पर परमेश्वर को  श्रीकृष्ण को प्रणाम किया।
_____________    
सन्दर्भ:-
ब्रह्मवैवर्तपुराण /खण्डः ४ (श्रीकृष्णजन्मखण्डः)/अध्यायः-( ८६ )
राधाया: प्रतिच्छाया वृन्दया: श्वशुरो वृकगोपश्च देवरो दुर्मदाभिध:।१७३।(ख)
श्वश्रूस्तु जटिला ख्याता पतिमन्योऽभिमन्युक:।
ननन्दा कुटिला नाम्नी सदाच्छिद्रविधायनी।१७४।
"अनुवाद:- राधा की प्रतिच्छाया रूपा वृन्दा के श्वशुर -वृकगोप देवर- दुर्मद नाम से जाने जाते थे। और सास- का नाम जटिला और पति अभिमन्यु - पति का अभिमान करने वाला था। हर समय दूसरे के दोंषों को खोजने वाली ननद का नाम कुटिला था।१७४।
सन्दर्भ:- श्री-श्री-राधागणोद्देश्यदीपिका( लघुभाग- श्री-कृष्णस्य प्रेयस्य: प्रकरण-  रूपादिकम्-



प्रस्तुति - यादव योगेश कुमार रोहि-
8077160219

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें