उ॒क्ष्णो हि मे॒ पञ्च॑दश सा॒कं पच॑न्ति विंश॒तिम् । उ॒ताहम॑द्मि॒ पीव॒ इदु॒भा कु॒क्षी पृ॑णन्ति मे॒ विश्व॑स्मा॒दिन्द्र॒ उत्त॑रः ॥१३।
वृषाकपायि रेवति) हे वृषाकपि- पत्नी रेवती ! (सुपुत्रे-आत् सुस्नुषे) अच्छे पुत्रोंवाली तथा अच्छी सुपुत्रवधू (ते-उक्षणः) तेरे लिए बैल को (प्रियं काचित्करं हविः) प्रिय सुखकर हवि-ग्रहण करने योग्य भेंट को (इन्द्रः-घसत्) -इन्द्र खाता है (मे हि पञ्चदश साकं विंशतिम्) मेरे लिये ही पन्द्रह और साथ बीस अर्थात् पैंतीस (उक्ष्णः पचन्ति) बैल पकाते हैं। (उत-अहम्-अद्मि) हाँ, मैं उन्हें खाता हूँ (पीवः) इसलिये मैं मोटा हो गया हूँ (मे-उभा कुक्षी-इत् पृणन्ति) मेरे दोनों पार्श्व अर्थात् अगल-बगल की कोख भर ती हैं। ॥१३-१४॥
वृषाकपि एक वैदिक वानर है जो इन्द्र साथ रहता है। उसी का विकसित रूप हनुमान- हैं।
'हनुमान'! 'नर' या 'वानर'?
महाकाव्य 'रामायण' तथा 'रामचरितमानस' के महापात्र "हनुमान' को यद्यपि पुनर्पुनः वानर, मर्कट, कपि, कीश, बन्दर आदि नामों से सम्बोधित किया गया है परन्तु उनका मानवीय करण कर के उनकी अनेक पत्नीयों की कल्पना की है।
"गवां शतसहस्त्रं च ग्रामाणां च शतं परम्।
सकुण्डला शुभाचारा भार्याः कन्यास्तु षोडश।।
(वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड 125/44।।)
भावार्थ- लंकाविजय के बाद हनुमान द्वारा राम की वापसी की सूचना पाकर, प्रसन्न भरत ने उन्हें एक लाख गौ, सौ उत्तम ग्राम तथा कुण्डलों सहित शुभाचरण वाली 16 कन्याएँ पत्नी के रूप में प्रदान कीं।
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