हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।
भाग द्वितीय :―
वर्ण विचार (Orthography):–
वर्ण विचार से तात्पर्य वर्णों के रूप में समावेशित स्वर , व्यञ्जन तथा इनके साथ रहने वाले "अयोगवाह ",उत्क्षिप्त तथा सभी -संयुक्त स्वर और व्यञ्जन रूपों के क्रमश: ऊर्ध्व विवेचनाओं से है ।
"Ortho" ग्रीक भाषा का शब्द जिसके व्यापक अर्थ हैं :– 1-सीधा ,2-सत्य, 3-सही,4-आयताकार, 5-नियमित, 6-सच्चा, 7-सही, 8-उचित ।
1-straight, 2-true, 3-correct, 4-rectangular" 5-regular,6-upright, , 7-proper,"
8-Ortho
यह शब्द लैटिन में आर्द्वास (arduus)पुरानी आयरिश में आर्द (Old Irish ard "high") जिसका अर्थ होता है :-उच्च ।
आद्य-भारोपीय भाषाओं में यह शब्द (Eredh)के रूप में है।
दूसरा शब्द ग्राफी है --जो ग्रीक भाषा के "graphos" से निर्मित है ।
ग्रीक ग्राफेन क्रिया "graphein " =to write --जो अन्य यूरोपीय भाषाओं में निम्न प्रकार से है ।👇
1-Dutch -graaf,
2- German -graph,
3-French -graphe,
4-Spanish -grafo).
संस्कृत में ग्रस् ग्रह् तथा वैदिक रूप गृभ् है । ______________________________________
वर्ण, मात्रा और उच्चारण (Orthography ,Diacritic and Pronunciation) के सन्दर्भों में
वर्ण-विन्यास - वर्तनी (Spelling)(हिज्जे) विचारणीय हैं ।
वर्ण भाषा की उस सबसे छोटी या लघुतम इकाई को कहते हैं, जिसे और खण्डित नहीं किया जा सकता है । जैसे कोई मकान ईंटौं से से बनता है ।
और ईंटौं से दीवारों के रद्दे बनते हैं ।
और उन रद्दौं का व्यवस्थित समूह दीवार है।🐶
जैसे- क्रमश वर्ण ( स्वर तथा व्यञ्जन ) शब्दों का निर्माण करते हैं ।
और शब्दों का वह व्यवस्थित समूह जो एक क्रमिक व अपेक्षित अर्थ को व्यक्त करता है वह वाक्य कहलाता है।
जैसे अनेक दीवारें मिलकर मकान या कोई कमरा बनाती हैं ।
और अनेक वर्ण < शब्द < वाक्यांश <उपवाक्य < वाक्य <गद्यांश या पेराग्राफ बनाते हैं और अनेक गद्यांश ही भाषा हैं ।
वस्तुतः किसी भी भाषा को बोलने के लिए प्रयुक्त होने वाली उस मूल ध्वनि को ही वर्ण कहते हैं जिसे और तोड़ा नहीं जा सकता ।
वर्णमाला (Alphabet) किसी भी भाषा के वर्णों के उस समूह को वर्णमाला कहते हैं, जिसमें उस भाषा में प्रयुक्त होने वाले सारे स्वर व व्यञ्जन व्यवस्थित क्रम से लिखे होते हैं ।
अंग्रेज़ी वर्णमाला में निम्नलिखित वर्णों के समावेश हैं स्वर (Vowels) -----
स्वरों के भेद (Kinds of Vowels) स्वर : अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ विशेष अ स्वर : अऽ – वर्तुल अ या दीर्घ विलम्बित अर्द्ध विवृत पश्च स्वर अ॑ – प्रश्लेष अ या दीर्घ अर्द्धसंवृत मध्य विशेष आ स्वर :
ऑ – अर्द्ध विवृत पश्च स्वर आ॑ – प्रश्लेष आ या अर्द्धसंवृत दीर्घ मध्य स्वर ।
व्यञ्जन (Consonants) क वर्ग – क् ख् ग् घ् ङ् च वर्ग – च् छ् ज् झ् ञ् ट वर्ग – ट् ठ् ड् ढ् ड़ ढ़ त वर्ग – त् थ् द् ध् न् प वर्ग – प् फ् ब् भ् म् अन्तःस्थ – य् र् ल् व् उष्म व्यञ्जन – स् ह् संयुक्त व्यञ्जन – क्ष त्र ज्ञ श्र
हिन्दी के समानान्तरण अंगिका वर्णमाला की मुख्य विशेषताएँ भी हैं :–👇
अंगिका एक भाषा है जो बिहार के पूर्वी, उत्तरी व दक्षिणी भागों, तथा झारखण्ड के उत्तर पूर्वी भागों और पश्चिमीय बंगाल के पश्चिमीय भागों में बोली जाती है।
जिसमें गोड्डा, साहिबगंज, पाकुड़, दुमका, देवघर, कोडरमा, गिरिडीह जैसे जिले सम्मिलित हैं।
यह भाषा बिहार के भी पूर्वी भाग में बोली जाती है जिसमें भागलपुर, मुंगेर, खगड़िया, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, अररिया आदि सम्मिलित हैं।
यह नेपाल के तराई भाग में भी बोली जाती है।
अंगिका भारतीय आर्य भाषा है।
अंगिका भाषा अंगिका भाषा बोली जाती है भारत, नेपाल क्षेत्र बिहार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल कुल बोलने वाले 743,600 भाषा परिवार हिन्द-यूरोपीय हिन्द-ईरानी हिन्द-आर्य पूर्वी समूह के अन्तर्गत बिहारी अंगिका भाषा है।
(क) अंगिका में अ के तीन रूप देखने को मिलते हैं – अ, अऽ, अ॑
(ख) अंगिका में आ के तीन रूप देखने को मिलते हैं – आ, ऑ, आ॑
(ग) अंगिका वर्णमाला में हिंदी वर्णमाला के कुछ वर्णों, जैसे :- ऋ, श, ष, ण का समावेश नहीं है ।
उदाहरण के लिए हिन्दी के ऋषि, ऋतु, रमेश, बाण को अंगिका में क्रमश रिसि, रितु, रमेस, बान लिखेंगें और उच्चारण भी बदले हुए वर्ण की तरह होगा ।
परन्तु आधुनिक काल के अंग्रेज़ी लेखन में ऋ, श, ष, ण का उपयोग हिन्दी वर्णमाला की तरह ही होता है ।
परन्तु बोलने में श, ष का उच्चारण स की तरह एवं ण का उच्चारण न की तरह होता है ।
अंग्रेजी अथवा यूरोपीय भाषाओं तवर्ग न होने के कारण "स" वर्ण बोलना असम्भव है ।
(ग)अं अर्थात अनुस्वार और अः अर्थात विसर्ग दोनों को अयोगवाह भी कहते हैं
क्योंकि ये न तो स्वर हैं और न ही व्यञ्जन ।
परन्तु अं और अः को पारम्परिक तौर पर स्वरों के वर्ग में शामिल किया जाता रहा है ।
मूलतः इनका प्रयोग तत्सम शब्दों में स्वर के बाद होता है ।
(घ) अनुस्वार (ं) का प्रयोग ङ् , ञ्, ण् , न् ,म् के बदले में किया जाता है ।
(जैसे – अङ्गिका – अंगिका, चम्पा – चंपा, अङ्ग – अंग, गङगा – गंगा, चञ्चल – चंचल, ठण्डा – ठंडा, कुन्द – कुंद, परम्परा – परंपरा )
(च) विसर्ग का प्रयोग हिन्दी में संस्कृत से आए शब्दों में होता है ।
जैसे – प्रायः, फलतः, निःसन्देह, स्वतः ।
(छ) ऑ – अंगिका के इस स्वर में व् की अल्पध्वनि सुनाई पड़ती है ।
यह स्वर हालाँकि हिन्दी में अंगिका तथा अंग्रेजी से आए शब्दों में होता है ।
परन्तु पारम्परिक रूप से अंग्रेज़ी के स्वर वर्ण के रूप में भी उपयोग होता रहा है ।
जैसे – अंग्रेजी से आये शब्दों में – डॉक्टर, डॉट, ऑफिस, कॉलेज, ऑफ , लॉग ।
अंगिका के मूल शब्दों में – चॉर (चावल), जॉत जिठौत (पति के भाई का पुत्र), छॉउर (छाया) के रूप में है ।।
मात्रा:-💮
स्वरों की मात्राएँ शब्द निर्माण की प्रक्रिया में जब किसी स्वर का प्रयोग किसी व्यंजन के साथ मिलाकर किया जाता है, तो स्वर का स्वरूप बदल जाता है ।
स्वर के इस बदले हुए स्वरूप को
ही मात्रा कहते हैं ।
अंगिका के स्वरों की मात्राएँ निम्नलिखित हैं ।
मात्रा को स्वरों का विशिष्ट चिन्ह (Diacritic) भी कहते हैं
अ – कोई मात्रा नहीं आ – ा इ – ि ई – ी उ – ु ऊ – ू ए – े ऐ – ै ओ – ो औ – ौ अं – ं अः – ः अऽ – ़ऽ अ॑ – ॑ ऑ – ॉ आ॑ –
वर्ण भेद उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी के वर्णों को दो भागों में बाँटा गया है –
स्वर और व्यंजन ।
स्वर हिन्दी के जिन वर्णों का उच्चारण बिना किसी अन्य वर्ण की सहायता से स्वत्रन्त्र रूप से बिना किसी बाधा के होता है, उन्हें स्वर कहते हैं ।
बिना किसी बाधा के उच्चारण का मतलब यह है कि स्वरों के उच्चारण के वक्त मुँह से निकलने वाली वायु का प्रवाह सतत रूप से बिना किसी बाधा के होता है ।
आप सतत रूप से किसी भी स्वर वर्ण का उच्चारण देर तलक करके देखें, कहीं भी ठहरने की जरूरत नहीं पड़ेगी ।
वर्णों का उच्चारण :- किसी भी भाषा में उच्चारण का बहुत अधिक महत्व है ।
यदि सही उच्चारण नहीं किया जाए तो वर्तनी सम्बन्धी गलतियाँ होने का डर होता है ।
क्योंकि हिन्दी मराठी, मगही, भोजपुरी की तरह अंगिका भी आधुनिक जमाने में देवनागरी लिपि में लिखी जाती है ।
प्राचीन समय में भले ही यह अंग लिपि में लिखी जाती थी ।
बाद में यह कैथी लिपि में भी
लिखी जाने लगी थी ।
आज के जमाने में भी अंगिका लिखने के लिए कैथी लिपि प्रयोग करने वाले कुछ लोग हैं ।
परन्तु अंगिका को देवनागरी लिपि में लिखने का सर्वाधिक प्रचलन है ।
देवनागरी लिपि की यह विशेषता है कि यह जैसा बोला जाता है, वैसा ही लिखा भी जाता है ।
स्वर के उच्चारण – अंगिका या विहारी हिन्दी भाषा में स्वर को विभिन्न आधार पर कई श्रेणियों में बाँटा गया है, जो निम्नलिखित हैं ।
१. उच्चारण के आधार पर –
(क) निरनुनासिक : जब उच्चारण केवल मुख से होता हो ।
जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।
(ख) अनुनासिक : जब उच्चारण केवल मुख और नासिका दौनों की सहायता से होता हो ।
जैसे – अँ, आँ, इँ, ईं , एँ, ऐं, ओं, औं ।
अंगिका के सभी स्वरों के अनुनासिक रुप प्रयोग में देखने को मिलते हैं ।
२. उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर – इस आधार पर स्वर के दो भेद हैं – ह्रस्व या एकमात्रिक – जिन स्वरों के उच्चारण में कम से कम समय लगता हो,
लगभग एक मात्रा के समय के बराबर, उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं ।
जैसे – अ, इ, उ ।
दीर्घ या द्विमात्रिक – जिन स्वरों के उच्चारण में अधिक समय लगता हो, लगभग दो मात्राओं के समय के बराबर, या ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं ।
जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ।
किसी व्यञ्जन का उच्चारण करने पर उसके साथ-साथ अपने आप अ स्वर का उच्चारण हो जाता है ।
सभी व्यंजन स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं ।
जब किसी व्यंजन में स्वर नहीं होता, तो उसके नीचे (् ) चिन्ह लगाते हैं , जिसे हलन्त कहते हैं ।
किसी व्यञ्जन के साथ ‘अ’ जुड़ने पर उसके नीचे हलन्त नहीं लगता ।
जैसे – क् + अ = क ख् + अ = ख ह् + अ = ह यह स्पष्ट है कि –
(क) अ का कोई मात्रा चिन्ह नहीं होता ।
(ख) स्वर के मात्रा चिन्ह को लगाने के लिए व्यञ्जन का हलन्त चिन्ह हटाने के बाद ही मात्रा
चिन्ह जोड़ते हैं ।
(ग) आ, ई, ओ, औ, अऽ, और ऑ की मात्राएँ व्यञ्जन के बाद लगाई जाती हैं ।
(घ) इ की मात्रा व्यञ्जन के पहले लगाई जाती है ।
(ङ) उ, ऊ, की मात्राएँ व्यञ्जन के नीचे लगाई जाती हैं
(च) ए ,ऐ,अ॑,अं, और अँ की मात्राएँ व्यञ्जन के ऊपर लगाई जाती हैं ।
(छ) र व्यञ्जन में उ एवं ऊ की मात्राएँ नीचे नहीं, बीच में लगती हैं ।
(र् +उ= रु, र् +ऊ=रू )
अंगिका स्वर ध्वनियों की मुख्य विशेषताएँ : -
(१) अंगिका की कुछ व्याकरणिक विलक्षणताएँ हैं, जो हिन्दी सहित बिहार, झारखण्ड की अन्य भाषाओं में दृष्टिगोचर नहीं होती हैं ।
जैसे –
(क) ह्रस्व ए और ओ के प्रयोग की बहुलता
(ख) न॑ का प्रयोग (राम न॑ कहलकै)
(ग) वर्तुल अ का पदान्त में योग ( ओकरऽ, रामऽ, गामऽ)
अंगिका का इस दृष्टि से बँगला से सादृश्य लक्षित होता है ।
(२) स्वर – अ, इ, तथा उ का अति लघु उच्चारण होता है ।
(३) अंगिका में स्वर ए, ओ के दीर्घ रूप के अतिरिक्त ह्रस्व रूप भी मिलते हैं ।
(एकाधटा, ओकरऽ) ।
यहाँ एकाधटा में ए और ओकरऽ में ओ का उच्चारण ह्रस्व रूप में है ।
(४) ऐ और औ दीर्घ एवं सन्ध्यक्षर रूप में उच्चरित होते हैं ।
ऐलै, औरू, आबै छै, जैभौ में ऐ और औ के उच्चारणों की भिन्नता स्पष्ट है ।
पिछले दोनों शब्दों में सन्ध्यक्षर के रूप में ऐ, औ का उच्चारण द्रष्टव्य है ।
(५) अंगिका की सर्वाधिक विशिष्ट स्वरध्वनि अ है । जिसका उच्चारण इतना वर्तुल होता है जितना किसी अन्य भाषाओं में नहीं होता ।
(क) यह प्रायः उन सभी अकारान्त शब्दों के अंत में सुनाई पड़ती है जिसके आगे कोई कारक परसर्ग लगता है ।
जैसे – घरऽ के, गाछऽ के, अनाजऽ मं॑, खमारऽ प॑, ट्रेनऽ मं॑, बसऽ प॑, क्लासऽ मं॑ ।
(ख) लेकिन अगर पद यदि एक अक्षर का है, यानि बिना परसर्ग का है तो आदि अ के रूप में यह अंतिम वर्ण के पहले प्रयुक्त होगा और इसका उच्चारण ओष्ठय होगा ।
जैसे – जऽल, घऽर, बऽल, कऽल, बऽन ।
यहाँ एकाक्षरिक पद में अ पर बलाघात भी लगेगा ।
व्यञ्जन वर्ण वैसे वर्ण हैं, जिनका उच्चारण स्वर वर्ण की सहायता से होता है ।
व्यञ्जन वर्ण के उच्चारण के वक्त मुख से निकलने वाली वायु के मार्ग में बाधा आती है ।
जिसकी वजह से वह रूक कर या बाधित होकर निकलती है ।
स्वरों की भाँति व्यंजनों के उच्चारण सतत रूप से नहीं हो पाता ।
आप जितनी बार व्यञ्जन का उच्चारण करने का प्रयास करेंगें, उतनी दफा नये सिरे से कोशिश करनी पड़ेगी ।
उदाहरण के लिए – क……क….क……, ह…..ह…..ह । स्पष्ट है कि स्वर की सहायता के बिना हम व्यञ्जन वर्ण लिख तो सकते हैं !
परन्तु बोल नहीं सकते हैं।
अब व्याकरण पर कुछ विचार करते हैं 🔜
_________________________________________
व्याकरण का यूरोपीय भाषाओं में रूपान्तरण ग्रामर शब्द के द्वारा उद्भासित है ।
प्राचीन ग्रीक (γραμμττική ) में
( व्याकरणिक , " लेखन में कुशल " ) क्रियात्मक रूपों से ग्रामर शब्द की अवधारणा का जन्म हुआ।
, लैटिन व्याकरण से, पुरानी फ्रांसीसी में Gramire ( शास्त्रीय भाषा सीखने " ) से ,
मध्य अंग्रेजी Gramer , gramarye , gramery से विकास हुआ।
γράμμα (grámma , " लेखन की रेखा )
से , प्रोटो-इण्डो-यूरोपीय gerbʰ- वैदिक भाषा में गृभ (नक्काशीदार , खरोंच ) से γράφω ( ग्रैफो से निकला , जिसका अर्थ :– लिखें ) से सम्बद्ध।
एक भाषा बोलने और लिखने के लिए नियमों और सिद्धांतों की एक प्रणाली का नाम ग्रामर है।
( अनगिनत , भाषाविज्ञान ) के सन्दर्भों में
शब्दों की आन्तरिक संरचना ( morphology ) का अध्ययन और वाक्यांशों और वाक्य ( वाक्यविन्यास ) के निर्माण में शब्दों का उपयोग मान्य है।
एक भाषा के व्याकरण के नियमों का वर्णन करने वाली एक पुस्तक ही व्याकरण है।
ग्रामर शब्द का भावार्थ है :- वह ग्रन्थ जो एक औपचारिक प्रणाली के द्वारा एक भाषा के वाक्यविन्यास को निर्दिष्ट करता है।
अधिकतर फ्रैंकिश शब्द ग्रिमा Grima ( मुखौटा, तथा जादूगर ) से आते हैं ।
जिससे ग्रिमेस शब्द की उत्पत्ति भी है।
एक अन्य स्रोत इतालवी शब्द रिमेस ("rhymes की पुस्तक") भी हो सकता है।
जो अन्ततः एक कठिन "जीवन" अपनाया क्योंकि यह फ्रांस चले गए।
किसी भी तरह से, फ्रांसीसी शब्द grimaire शब्द के साथ मिलकर शब्द (grammaire)या ( ग्रामर Grámma) शब्द बना ।
इसी के समानान्तरण यूरोपीय भाषाओं में Spell शब्द का प्रयोग मन्त्र बोलने के लिए भी होता है और भाषाओं की वर्तनी के लिए भी क्योंकि दौनों की गतिविधियाँ समान हैं ।
वैसे भी व्याकरण उच्चारण और वर्तनी का नियामक है
_________________________________________
इस शब्द की अवधारणा एक पुरानी वर्तनी, "लैटिन के अध्ययन" और "गहन और गुप्त विज्ञान" के अर्थ में "व्याकरण" के सुझाव की भी है "।
ग्रीक भाषा में gramma शब्द का अर्थ "letter"( वर्ण)है ।
प्राचीन ग्रीक γραμματικός ( व्याकरणिक , " में सीखना और लिखना सीखना ) से पुरानी फ्रांसीसी gramaire से भी अर्वाचीन फ्रांसीसी grimoire में उधार लिया।
व्याकरण , ग्लैमर और व्याकरण का सन्दर्भित रूप ।
जादू या कीमिया के उपयोग में उसके निर्देशों की एक पुस्तक, विशेष रूप से दैत्यों को बुलाने के लिए भी ग्रामा शब्द रूढ़ रहा है ।
gram:- noun word-forming element,
"that which is written or marked," from Greek gramma
"that which is drawn; a picture, a drawing; that which is written, a character, an alphabet letter, written letter, piece of writing;" in plural, "letters,"
also "papers, documents of any kind," also "learning," from stem of graphein "to draw or write"
(-graphy). Some words with There are from Greek compounds,
others modern formations.
Alternative -gramme is a French form.। __________________________________________
शब्द विचार की परिभाषा :–
शब्द विचार हिन्दी व्याकरण का दूसरा खण्ड है ;
जिसके अन्तर्गत शब्द की परिभाषा, भेद-उपभेद, सन्धि, विच्छेद, रूपान्तरण, निर्माण आदि से सम्बन्धित नियमों पर विचार किया जाता है।
शब्द की परिभाषा:- ( Definition of Word :-) वर्णों या अक्षरों से बना ऐसा स्वत्रन्त्र समूह जिसका कोई अर्थ हो, वह समूह शब्द कहलाता है।
वस्तुत समूह शब्द कुछ सीमा तक सार्थक ही है।
क्योंकि एक वर्ण जिसका अर्थ हो उसे भी शब्द कहते हैं जैसे- क= ब्रहमा । ख=आकाश ।
जैसे: लड़का, लड़की, गाय ,घोड़ा आदि।
शब्द विचार का वर्गीकरण:-
1-अर्थ के आधार पर
2-बनावट या रचना के आधार पर
3-प्रयोग के आधार पर
4-उत्पत्ति के आधार पर _________________________________________
1-On the basis of meaning
2-On the basis of texture or composition
3-On the basis of experiment
4-On the basis of origin
अर्थ के आधार पर शब्द के भेद:- अर्थ के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं :
सार्थक शब्द निरर्थक शब्द
1. सार्थक शब्द: वे शब्द जिनसे कोई अर्थ निकलता हो, सार्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे: गुलाब, आदमी, विषय आदि।
2. निरर्थक शब्द : वे शब्द जिनका कोई अर्थ ना निकल रहा हो या जो शब्द अर्थहीन हो, निरर्थक शब्द कहलाते हैं। जैसे: देना-वेना, मुक्का-वुक्का आदि।
रचना (बनावट) के आधार पर शब्द के भेद:-
(On the basis of texture or composition)
रचना के आधार पर शब्द के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं:
१-रूढ़ शब्द 1-Stereo word
२-यौगिक शब्द 2-compound word
३-योगरूढ़ शब्द 3-word form
1. रूढ़ शब्द :- ऐसे शब्द जो किसी विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं; लेकिन अगर उनके टुकड़े कर दिए जाएँ तो निरर्थक हो जाते हैं,
ऐसे शब्दों को रूढ़ शब्द कहते हैं।
जैसे: जल, कल, जप आदि।
2. यौगिक शब्द :-ऐसे शब्द जो किन्हीं दो सार्थक शब्दों के मेल से बनते हों वे शब्द यौगिक शब्द कहलाते हैं। इन शब्दों के खण्ड भी सार्थक होते हैं।
जैसे: स्वदेश : स्व + देश, देवालय : देव + आलय, कुपुत्र : कु + पुत्र आदि।
3. योगरूढ़ शब्द:- ऐसे शब्द जो किन्हीं दो शब्दों के योग से बने हों एवं बनने पर किसी विशेष अर्थ का बोध कराते हौं, वे शब्द योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं।
जैसे: दशानन : दस मुख वाला अर्थात रावण , पंकज : कीचड़ में उत्पन्न होने वाला अर्थात कमल आदि।
प्राय: बहुव्रीहि समास ऐसे शब्दों के अन्तर्गत आते हैं।
प्रयोग के आधार पर शब्द के भेद प्रयोग के आधार पर शब्द के दो भेद होते हैं।
विकारी शब्द और अविकारी शब्द :-
1. विकारी शब्द : ऐसे शब्द जिनके रूप में लिंग, वचन, कारक के अनुसार परिवर्तन होते हैं,
वे शब्द विकारी शब्द कहलाते हैं।
जैसे: लिंग : बच्चा पढता है।
—> बच्ची पढ़ती है।
वचन : बच्चा सोता है।
—–> बच्चे सोते हैं।
कारक : बच्चा सोता है।
—> बच्चे को सोने दो।
जैसा कि आप ऊपर दिए गए उदाहरण में देख सकते हैं बच्चा एक शब्द है यह लिंग, वचन एवं कारक के अनुसार परिवर्तित हो रहा है।
अतः यह विकारी शब्दों के अंतर्गत आएगा।
2. अविकारी शब्द : ऐसे शब्द जिन पर लिंग, वचन एवं कारक आदि का कोई फर्क नहीं पड़ता एवं जो अपरिवर्तित रहते हैं।
ऐसे शब्द अविकारी शब्द कहलाते हैं।
जैसे: तथा, धीरे, किन्तु, परन्तु, तेज़, अधिक आदि। जैसा कि हम जानते हैं
"किन्तु "जैसे शब्द लिंग, वचन कारक आदि बदलने पर भी अपरिवर्तित रहेंगे।
अतः ये उदाहरण अविकारी शब्दों के अंतर्गत आयेंगे। उत्पत्ति के आधार पर शब्द के भेद :–
उत्पत्ति के आधार पर शब्द के चार भेद होते हैं: तत्सम शब्द , तद्भव शब्द, देशज शब्द तथा विदेशी शब्द ।
1. तत्सम शब्द : तत् (उसके) + सम (समान) अर्थात् ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा में हुई ओर वे हिन्दी भाषा में बिना किसी परिवर्तन के प्रयोग में आने लगे, ऐसे शब्द तत्सम शब्द कहलाते हैं।
जैसे: पुष्प, फुल्ल, पुस्तक, पृथ्वी, क्षेत्र, कार्य, मृत्यु, कवि, माता, विद्या, नदी, फल, अग्नि, पुस्तक आदि।
2. तद्भव शब्द : ऐसे शब्द जिनकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई थी लेकिन वो रूप बदलकर हिन्दी में आ गए हों, ऐसे शब्द तद्भव शब्द कहलायेंगे।
जैसे: फुल्ल__फूल दुग्ध —-> दूध अग्नि —-> आग कार्य —> काम कर्पूर —> कपूर हस्त —-> हाथ बन्जारा (पन्सारी)__पण्यचारी
3. देशज शब्द :-ऐसे शब्द जो भारत की विभिन्न स्थानीय बोलियों में से हिंदी में आ गए हैं, वे शब्द देशज शब्द कहलाते हैं।
जैसे: पेट, डिबिया, लोटा, पगड़ी, थैला, इडली, डोसा, समोसा, चमचम, गुलाबजामुन, लड्डु, खटखटाना, खिचड़ी ,कब्बडी आदि।
ऊपर दिए गए सभी उदाहरण भारत की ही विभिन्न स्थानीय बोलियों में से क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हैं।
ये अब हिन्दी में आ गए हैं।
अतः यह शब्द देशज शब्द कहलायेंगे।
4. विदेशी शब्द:- ऐसे शब्द जो भारत से बाहर की भाषाओं से हैं लेकिन ज्यों के त्यों हिन्दी में प्रयुक्त हो गए, वे शब्द विदेशी शब्द कहलाते हैं।
मुख्यतः यह विदेशी जातियों से हमारे बढ़ते मिलन से हुआ है।
ये विदेशी शब्द उर्दू, अरबी, फारसी,अंग्रेजी, पुर्तगाली, तुर्की, फ्रांसीसी, ग्रीक आदि भाषाओं से आए हैं।
विदेशी शब्दों के उदाहरण निम्न हैं :
अंग्रेजी : –कॉलेज, पैंसिल, रेडियो, टेलीविजन, डॉक्टर, लैटरबक्स, पैन, टिकट, मशीन, सिगरेट, साइकिल आदि
फारसी :– अनार,चश्मा, जमींदार, दुकान, दरबार, नमक, नमूना, बीमार, बर्फ, रूमाल, चुगलखोर, आदि।
अरबी :– औलाद, अमीर, कत्ल, कलम, कानून, ख़त, फकीर, रिश्वत, औरत, कैदी, मालिक, गरीब आदि।
तुर्की :– कैंची, चाकू, तोप, बारूद, लाश, दारोगा, बहादुर , ठाकुर ( तक्वुर) आदि।
पुर्तगाली :– अचार, आलपीन, कारतूस, गमला, चाबी, तिजोरी, तौलिया, फीता, साबुन, तंबाकू, कॉफी, कमीज आदि।
फ्रांसीसी : पुलिस, कार्टून, इंजीनियर, कर्फ्यू, बिगुल आदि।
चीनी : तूफान, लीची, चाय, पटाखा आदि।
यूनानी : टेलीफोन, टेलीग्राफ, ऐटम, डेल्टा, सुरंग आदि।
जापानी : रिक्शा आदि।
1. संज्ञा – किसी वस्तु , प्राणी , भाव व स्थान के नाम को संज्ञा कहते हैं ; जैसे – हिमालय , गाय , मिठास आदि।
_______________________________________
संज्ञा के प्रकार --(kinds of Noun) संज्ञा के प्रकार
ये मूलत: पाँच प्रकार की होती हैं ।
भाषा विज्ञान में, संज्ञा एक विशाल, मुक्त शाब्दिक वर्ग का सदस्य है, जिसके सदस्य वाक्यांश के कर्ता के मुख्य शब्द, क्रिया के कर्म, या पूर्वसर्ग के कर्म के रूप में उपस्थित हो सकते हैं।
शाब्दिक वर्गों को इस सन्दर्भों में परिभाषित किया जाता है कि उनके सदस्य अभिव्यक्तियों के अन्य प्रकारों के साथ किस तरह संयोजित होते हैं।
संज्ञा के लिए भाषावार वाक्यात्मक नियम भिन्न होते हैं। अंग्रेज़ी में, संज्ञा को उन शब्दों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है,
जो उपपद (Articles)और गुणवाचक विशेषणों के साथ होते हैं और संज्ञा वाक्यांश के शीर्ष के रूप में कार्य कर सकते हैं।
पारम्परिक अंग्रेज़ी व्याकरण में संज्ञा आठ शब्द भेदों में से एक है।
यह शब्द लैटिन के nomen से व्युत्पन्न है,
जिसका अर्थ है नाम ।
संज्ञा जैसे शब्द वर्गों को सबसे पहले संस्कृत व्याकरण तथा डायनाइसियोस थ्रैक्स जैसे प्राचीन यूनानियों ने वर्णित किया और उनके रूपविधान व गुणों के संदर्भ में उनकी परिभाषा दी ।
उदाहरण के लिए, प्राचीन ग्रीक में, संज्ञा व्याकरणिक कारक के लिए क्रियारूप प्रस्तुत करते हैं,
जैसे संप्रदान कारक या कर्म कारक.
संज्ञा (Noun) की विभिन्न परिभाषाएं विद्वानों दी हैं ।
प्राकृतिक भाषा की अभिव्यक्तियों में विभिन्न स्तरों पर विशेषताएं होती हैं।
इनमें औपचारिक विशेषताएं होती हैं, जैसे कि वे किस प्रकार के रूपात्मक उपसर्ग या प्रत्यय लगते हैं और किस अन्य प्रकार की अभिव्यक्तियों के साथ संयोजित होती हैं।
लेकिन इनके साथ अर्थगत विशेषताएं भी जुड़ी हैं, यानी उनके अर्थ से संबंधित गुण है।
संज्ञा ( noun )की परिभाषा एक औपचारिक पारम्परिक व्याकरणमूलक परिभाषा है।
वह परिभाषा, अधिकांशतः, अविवादास्पद मानी जाती है और कतिपय भाषाओं के उपयोगकर्ताओं के लिए अनेक संज्ञाओं को ग़ैर संज्ञाओं से प्रभावी रूप से अंतर समझने का साधन प्रस्तुत करती है।
संज्ञा के भेद –:
1 . व्यक्तिवाचक संज्ञा - गुलाब, दिल्ली, इंडिया गेट, गंगा, राम आदि
2 . जातिवाचक संज्ञा – गधा, क़िताब, माकन, नदी आदि
3. भाववाचक संज्ञा - सुंदरता, इमानदारी, प्रशन्नता, बईमानी आदि
जातिवाचक संज्ञा के दो उपभेद हैं –⬇
4. द्रव्यवाचक संज्ञा तथा
5. समूहवाचक संज्ञा .
इन दो उपभेदों को मिला कर संज्ञा के कुल 5 प्रकार को जाते हैं|
अब संज्ञा के सभी प्रकार का संक्षेप वर्णन नीचे किया गया है-
व्यक्तिवाचक संज्ञा :- (proper Noun)
जिन शब्दों से किसी विशेष व्यक्ति, विशेष प्राणी, विशेष स्थान या किसी विशेष वस्तु का बोध हो उन्हें व्यक्तिवाचक संज्ञा कहते है.
जैसे- रमेश (व्यक्ति का नाम), आगरा (स्थान का नाम), बाइबल (क़िताब का नाम), ताजमहल (इमारत का नाम), एम्स (अस्पताल का नाम) इत्यादि.
जातिवाचक संज्ञा :- (Common Noun)
वैसे संज्ञा शब्द जो की एक ही जाति के विभिन्न व्यक्तियों, प्राणियों, स्थानों एवं वस्तुओं का बोध कराती हैं उन्हें जातिवाचक संज्ञाएँ कहते है।
कुत्ता, गाय, हाथी, मनुष्य, पहाड़ आदि शब्द एकही जाति के प्राणियों, वस्तुओं एवं स्थानों का बोध करा रहे है।
जातिवाचक संज्ञा के अंतर्गत निम्नलिखित दो है –
(क) द्रव्यवाचक संज्ञा –
जिन संज्ञा शब्दों से किसी पदार्थ या धातु का बोध हो, उन्हें द्रव्यवाचक संज्ञा कहते है ।
जैसे – दूध, घी, गेहूँ, सोना, चाँदी, उन, पानी आदि द्रव्यवाचक संज्ञाएँ है।
(ख) समूहवाचक संज्ञा -:
जो शब्द किसी समूह या समुदाय का बोध कराते है, उन्हें समूहवाचक संज्ञा कहते हैं।
जैसे – भीड़, मेला, कक्षा, समिति, झुंड आदि समूहवाचक संज्ञा हैँ।
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व्यक्तिवाचक संज्ञा का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग:
व्यक्तिवाचक संज्ञाएँ कभी कभी ऐसे व्यक्तियों की ओर संकेत करती हैं, जो समाज में अपने विशेष गुणों के कारण प्रचलित होते हैं।
उन व्यक्तियों का नाम लेते ही वे गुण हमारे मस्तिष्क में उभर आते है, जैस-
हरीशचंद्र (सत्यवादी), महात्मा गांधी (महात्मा), जयचंद (विश्वासघाती), विभीषण (घर का भेदी),
अर्जुन (महान् धनुर्धर) इत्यादि।
कभी कभी बोलचाल में हम इनका इस्तेमाल इस प्रकार कर लेते हैं-
इस देश में जयचंदों की कमी नहीं ।
1. (जयचंद- देशद्रोही के अर्थ में)
2. कलियुग में हरिशचंद्र कहां मिलते हैं ।
(हरिशचंद्र- सत्यवादी के अर्थ में प्रयुक्त)
3. हम्हें देश के विभीषणों से बचकर रहना चाहिए । (विभीषण- घर के भेदी के अर्थ में प्रयुक्त)
जातिवाचक संज्ञा का व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग:-
कमी-कभी जातिवाचक संज्ञाएँ रूढ हो जाती है ।
तब वे केवल एक विशेष अर्थ में प्रयुक्त होने लगती हैं- जैसे:
पंडित जी हमारे देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे।
यहाँ ‘पंडित जी‘ जातिवाचक संज्ञा शब्द है, किंतु भूतपूर्व प्रधानमंत्री ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू’ अर्थात् व्यक्ति विशेष के लिए रूढ़ हो गया है ।
इस प्रकार यहाँ जातिवाचक का व्यक्तिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग किया गया है बाबू जी ने हरिजनों का उद्धार किया । ( बाबू जी –राष्ट्रपिता गांधी)
नेता जी ने कहा- “तुम मुझे खून दे, मैं तुम्हें आजादी कूँरा ।
(नेता जी – सुभाष चंद्र बोस)
भाववाचक संज्ञा –
जो संज्ञा शब्द गुण, कर्म, दशा, अवस्था, भाव आदि का बोध कराएँ उन्हें भाववाचक संज्ञाएँ कहते है।
जैसे – भूख, प्यास, थकावट, चोरी, घृणा, क्रोध, सुंदरता आदि।
भाववाचक संज्ञाओं का संबंध हमारे
भावों से होता है ।
इनका कोई रूप या आकार नहीं होता ।
ये अमूर्त (अनुभव किए जाने वाले) शब्द होते है।
भाववाचक संज्ञाओं का जातिवाचक संज्ञा के रूप में प्रयोग :
भाववाचक संज्ञाएँ जब बहुवचन में प्रयोग की जाती है, तो वे जातिवाचक संज्ञाएँ बन जाती हैं ; जैसे –
(क) बुराई से बचो । ( भाववाचक संज्ञा)
बुराइयों से बचो । (जातिवाचक संज्ञा)
(ख) घर से विद्यालय की दूरी अधिक नहीं है।
(भाववाचक संझा)
मेरे और उसके बीच दूरियाँ बढ़ती जा रही है । (जातिवाचक संज्ञा)
द्रव्यवाचक संज्ञाएँ एवं समुहवाचक संज्ञाएँ भी जब बहुवचन में प्रयोग होती हैं तो वे जातिवाचक
संज्ञाएँ बन जाती हैं,
जैसे-
(क) मेरी कक्षा में 50 बच्चे हैं ।
(समूहवाचक संज्ञा)
भिन्न – भिन्न विषयों की कक्षाएँ चल रही है । (जातिवाचक संज्ञा)
(ख) सेना अभ्यास कर रही है।
(समूह -वाचक संज्ञा)
हमारी सारी सेनाएँ वीरता से लडी।
(जातिवाचक संज्ञा)
(ग) रोहन का परिवार यहाँं रहता है।
(समूहवाचक संज्ञा)
परिवारों में अब सुलह नहीं है ।
( जातिवाचक वाचक)
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2. सर्वनाम – संज्ञा के स्थान पर काम में आने वाला शब्द सर्वनाम शब्द होता है |
जैसे – राम एक लड़का है |
राम बाजार गया |
राम ने सामान खरीदा |
राम एक लड़का है | वह बाजार गया |
उसने सामान खरीदा |
सर्वनाम के भेद सर्वनाम मुख्यत: दस प्रकार के हैं ।
यह सर्वनाम वाक्य का एक प्रमुख भाग है जैसे क्रिया।
यह एक वाक्य में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लगभग हम सब हर वाक्य में एक सर्वनाम का उपयोग करते हैं, इसलिए हमारे द्वारा वाक्यों में सर्वनाम का सही उपयोग करना बहुत महत्वपूर्ण है।
सर्वनाम: - सर्वनाम एक ऐसा शब्द है जो संज्ञा या संज्ञा के समूह का स्थान लेता है।
जिस संज्ञा या संज्ञा के समूह से सर्वनाम का स्थान लिया जाता है, उसे पूर्ववर्ती "Anticedent ," कहा जाता है।
लड़के ने कहा कि वह थका हुआ था।
इस उदाहरण में, सर्वनाम "वह" संज्ञा (पूर्ववर्ती) "लड़का" का उल्लेख कर रहा है।
ज़हरा ने अली को बुलाया और उसे अपने साथ स्केटिंग जाने के लिए आमंत्रित किया।
इस वाक्य में सर्वनाम "उसके और उसके" हैं।
उसके पूर्वज = अली और उसके पूर्वज = ज़हरा
ज़हरा ने अली को बुलाया और अली को ज़हरा के साथ स्केटिंग करने के लिए आमंत्रित किया।
= अजीब और दोहराव को रोकने लिए सर्वनाम आवश्यक हैं ।
सर्वनामों के प्रकार
1. व्यक्तिगत सर्वनाम:
एक व्यक्तिगत सर्वनाम जो व्यक्ति या बोलने वाले सुनने वाले या जिसके विषय में बात कही जाए उस व्यक्ति बताता है।
व्यक्तिगत सर्वनाम दो समूहों में विभाजित हैं: 1-विषय-परक और 2-उद्देश्य-परक।
विषयवाचक सर्वनाम:- एक सर्वनाम जो वाक्य में विषय (कर्ता)के रूप में कार्य करता है (वह, , यह, ये, मैं, हम, आप, वे)।
उद्देश्यवाचक सर्वनाम:- एक सर्वनाम जो वाक्य में ऑब्जेक्ट (कर्म) के रूप में कार्य करता है (उसको उसे, इसको, मुझे, हमें, आपको, उन्हें)।
ट्रैक टीम में तेज धावक वह है।
वह = सर्वनाम = विषय पूरक।
विषय पूरक:– विषय पूरक एक संज्ञा या सर्वनाम है जो क्रिया के विषय को संदर्भित करता है और क्रिया के विषय के बारे में अधिक जानकारी देता है।
जब एक सर्वनाम का उपयोग विषय के पूरक के रूप में किया जाता है; तो इसे एक विषयपरक मामले के रूप में उपयोग किया जाना चाहिए।
बोलने वाले व्यक्ति को संदर्भित करता है = (मैं, और हम)।
= (आप) बोलने वाले व्यक्ति को संदर्भित करता है।
उस व्यक्ति या बात का संदर्भ देता है जिसके बारे में = (वह, उसका, यह, और वे)
2. पूछताछ( प्रश्नवाचक) के सर्वनाम:
प्रश्नवाचक सर्वनाम वे सर्वनाम होते हैं जो एक प्रश्न का परिचय देते हैं।
(कौन, क्या, कौन, किसका)।
प्रश्नवाचक सर्वनाम जो प्रश्न प्रस्तुत करता है वह प्रत्यक्ष प्रश्न हो सकता है, इस मामले में, वाक्य एक प्रश्न चिह्न के साथ समापन होता है ।
और यह भी एक अप्रत्यक्ष प्रश्न हो सकता है।
सर्वनाम और उसके प्रकारों के बारे में आप क्या जानते हैं?
विशेष: पूछताछ (प्रश्नवाचक) सर्वनाम और पूछताछ(प्रश्नवाचक) विशेषण के बीच अन्तर।
प्रश्नवाचक सर्वनामों का उपयोग उस चीज़ का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है, जिसमें से कोई प्रश्न पूछा जा रहा हो।
संवादात्मक विशेषण संशोधित करते हैं या किसी संज्ञा का वर्णन करते हैं।🐴
ये किताबें (किसकी) हैं? = प्रश्नवाचक सर्वनाम।
ये (किसकी )किताबे है? = प्रश्नवाचक विशेषण।
(Whose )are these books? = interrogative pronoun.
(Whose) books are these? = interrogative adjective.
3. अनिश्चित सर्वनाम: Indefinite Pronoun
अनिश्चित सर्वनाम वे सर्वनाम हैं जो एक अनिर्दिष्ट व्यक्ति, स्थान, चीज या विचार का उल्लेख करते हैं।
जैसे:-(सभी, कोई भी, दोनों, प्रत्येक, कुछ भी, हर, कई, कोई, आदि ...)।
सभी को आज रात की पार्टी में आमंत्रित किया गया है।
सबका स्वागत है।
स्नातक करने के लिए सभी को परीक्षा देनी होगी।
स्नातक के लिए सभी छात्र उत्साहित थे।
4. सापेक्ष सर्वनाम: Relative pronouns:
एक (सम्बन्ध वाचक) सर्वनाम का उपयोग अधीनस्थ खण्ड को पेश करने के लिए किया जाता है।
एक खण्ड Clause (उपवाक्य)क्या है?
किसी विषय और विधेय वाले शब्दों का समूह कभी-कभी पूर्ण अर्थ देता है कभी-कभी पूर्ण अर्थ नहीं भी देता है, और तब इसे दो समूहों में विभाजित किया जाता है:
स्वतंत्र खड: (Ordinate clause) एक स्वतंत्र खंड वाक्य के रूप में अकेला खड़ा हो सकता है।
अधीनस्थ खंड: (Subordinate clause )एक अधीनस्थ खंड एक वाक्य के रूप में अकेला खड़ा नहीं हो सकता है और यह स्वतंत्र खंड से जुड़ा हुआ होता है।
(कौन, किसका, किसका, और वह)
नोट: जैसा कि आप देख रहे हैं कि इन सर्वनामों में से कुछ भी प्रश्नवाचक सर्वनामों में प्रकट हुए हैं, लेकिन यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि उनका उपयोग वाक्य में कैसे किया जाता है।
याद रखें कि जब ये प्रश्नवाचक शब्द सम्बन्ध वाचक सर्वनाम के रूप में उपयोग किए जाते हैं तो वे एक अधीनस्थ खंड का परिचय देते हैं;
और स्वतंत्र खंड में कुछ विशेष के अधीनस्थ खंड से संबंधित होते हैं।
१-यही वह फिल्म है जिसे उनके द्वारा निर्देशित किया गया था।
२-यह वह आदमी है जो कल मेरे घर आया था।
नोट: याद रखें कि सापेक्ष (सम्बन्ध-वाचक) विशेषणों के साथ सापेक्ष (सम्बन्ध-वाचक) सर्वनामों को न मिलाएं।
विशेषण में एक संज्ञा संदर्भित स्थान होता है (आमतौर पर इसके बाद।)
केवल दो सापेक्ष विशेषण होते हैं,
जो और क्या।
•उसने यह नहीं बताया कि वह क्या पहनने जा रहा था। = संबंधवाचक सर्वनाम।
•उसने यह नहीं बताया कि वह कौन सा सूट पहनने वाली थी। = सम्बन्ध-वाचक विशेषण।
5. संभावित (स्वत्वबोधक) सर्वनाम:
(Possessive pronouns)
संभावित सर्वनाम 'वह सर्वनाम हैं जो स्वामित्व को दर्शाता है।
(उसका, इसका, मेरा, हमारा, आपका, उनका।)
पहले से ही स्पष्ट की गई जानकारी को दोहराने से बचने के लिए एक अधिकारी सर्वनाम का उपयोग किया जाता है।
ये उपयोगी सर्वनाम वाक्य को कम भ्रामक बनाते हैं, जैसा कि आप देखते हैं कि जब आप निम्नलिखित वाक्यों को पढ़ते हैं, जिनके पास सर्वनाम के उदाहरण होते हैं।
यह मेरी कार है, आपकी कार नहीं है।
(दोहराव लगता है)
यह कार मेरी है, आपकी नहीं।
मेरे पास मेरी किताब नहीं थी इसलिए अली ने मुझे अपनी किताब दी।
(दोहराव लगता है)
मेरे पास मेरी किताब नहीं है, इसलिए अली ने मुझे उधार दिया।
6. निज वाचक सर्वनाम ( Reflexive Pronoun)
निजवाचक वह सर्वनाम होते हैं जिनका उपयोग यह दिखाने के लिए किया जाता है कि वाक्य के विषय (कर्ता) को क्रिया की कार्रवाई प्राप्त हो रही है।
(स्वयं,)
वह खुद को संभाल सकती है।
उन्हें अपने कार्य स्वयं करने होंगे।
इसमें प्रकार के सर्वनामों में क्रिया के बाद स्वयं शब्द कर्म के रूप में आता है ।
अर्थात् जो व्यक्ति कर्ता है वही कर्म भी होता है ।
जैसे मोहन ने स्वयं को समझाया ।
हरी ने खुद को गोली मारी ।
7. गहन (प्रभाव सूचक )सर्वनाम:
इन सर्वनामों का उपयोग केवल विषय(कर्ता ) पर जोर देने के लिए किया जाता है।
विशेष: ये सर्वनाम निजवाचक सर्वनाम के समान लगते हैं, लेकिन वे वाक्य में अलग-अलग कार्य करते हैं और हमेशा उस विषय (कर्ता ) के पार्श्ववर्ती (बगल में )रखे जाते हैं जिस पर वे जोर दे रहे हैं।
(स्वयं )
विशेष:–निजवाचक सर्वनाम की अपेक्षा वाक्य' में ये कर्ता के तुरन्त बाद या वाक्य' के अन्त में रखे जाते हैं ।
आपको खुद पुलिस स्टेशन जाना चाहिए।
हम खुद समस्या का समाधान करेंगे।
8. प्रदर्शनकारी सर्वनाम: (संकेतवाचक) इसे निश्चित या निश्चय वाचक सर्वनाम भी कहते हैं।
एक प्रदर्शनकारी सर्वनाम एक वह सर्वनाम है जो एक वाक्य के भीतर कुछ विशेष को इंगित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
ये सर्वनाम अंतरिक्ष या समय में वस्तुओं को इंगित कर सकते हैं, और वे एकवचन या बहुवचन हो सकते हैं। (यह, वह, ये, वे, कोई नहीं, न ही और ऐसे)
१-यह मेरी माँ की अंगूठी थी।
२-ये अच्छे सोफे हैं, लेकिन वे असहज दिखते हैं।
प्रदर्शनकारी सर्वनाम का उपयोग कैसे करें?
प्रदर्शनकारी सर्वनाम हमेशा संज्ञा की पहचान करते हैं, चाहे उन संज्ञाओं को विशेष रूप से नाम दिया गया हो या नहीं।
मैं यह नहीं मान सकता।
हमें नहीं पता कि "यह" क्या है।
प्रदर्शनकारी सर्वनाम आमतौर पर जानवरों, स्थानों या चीजों का वर्णन करने के लिए उपयोग किया जाता है, हालांकि, उनका उपयोग लोगों की पहचान करने के लिए किया जा सकता है।
यह हसीना के गायन जैसा लगता है।
विशेष : प्रदर्शनकारी विशेषणों को प्रदर्शनकारी सर्वनामों के साथ भ्रमित होकर न समझा करें।
एक प्रदर्शनकारी सर्वनाम एक वाक्य में संज्ञा वाक्यांश का स्थान लेता है।
एक विशेषण हमेशा वाक्य में एक संज्ञा के बाद होता है।
जैसे:-
(ये) मेरे दोस्त के जूते हैं (संकेतवाचक सर्वनाम)
(ये) जूते मेरे दोस्त के हैं। (संकेतवाचक विशेषण)
These are my friend’s shoes.
(Demonstrative Pronoun)
These shoes are his.
(Demonstrative Adjective)
9. पारस्परिक सर्वनाम: (Reciprocal Pronoun)
पारस्परिक सर्वनाम वे सर्वनाम होते हैं जिनका उपयोग लोगों के आपसी सम्बन्ध को दर्शाने के लिए किया जाता है।
•(एक दूसरे के)
हमें जीवित रहने के लिए एक दूसरे की मदद करने की आवश्यकता है।
उन्हें एक-दूसरे के फोन नंबर याद थे।
10. वितरण (विभाग सूचक)सर्वनाम: Distributive Pronoun
वितरणवाचक सर्वनाम वे सर्वनाम होते हैं जो एक समय में एक व्यक्ति, स्थान या चीजों को इंगित करते हैं।
(प्रत्येक, या तो और न ही)
प्रत्येक छात्रों ने किया है।
या तो आप ने किया है।
दोनों में से किसी ने भी ऐसा नहीं किया है।
विशेष: एक वितरण सर्वनाम हमेशा एकवचन होता है और इस तरह, इसे एक एकवचन संज्ञा और क्रिया द्वारा पालन किया जाना चाहिए।
न तो सवाल आसान है। (सही बात)
न तो प्रश्न आसान है (गलत)
सर्वनामों के बिना, हमें संज्ञाओं को दोहराते रहना होगा, और इससे हमारा भाषण और अजीब और दोहराव भरा होगा,
इसलिए आपको अपने वाक्य का निर्माण करने के लिए सर्वनाम और इसके प्रकारों के बारे में सीखना होगा।
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सर्वनाम की परिभाषा( Definition of Pronoun) जिन शब्दों का प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है, उन्हें सर्वनाम कहते है।
दूसरे शब्दों में- सर्वनाम उस विकारी शब्द को कहते है, जो पूर्वापरसंबध से किसी भी संज्ञा के बदले आता है। सरल शब्दों में- सर्व (सब) नामों (संज्ञाओं) के बदले जो शब्द आते है, उन्हें 'सर्वनाम' कहते हैं।
सर्वनाम यानी सबके लिए नाम।
इसका प्रयोग संज्ञा के स्थान पर किया जाता है।
आइए देखें, कैसे?
१-गीता सातवीं कक्षा में पढ़ती है।
वह पढ़ाई में बहुत तेज है।
२-उसके सभी मित्र उससे प्रसन्न रहते हैं।
वह कभी-भी स्वयं पर घमंड नहीं करती।
आपने देखा कि ऊपर लिखे अनुच्छेद में राधा के स्थान पर वह, उसके, उससे, स्वयं, अपने आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है।
अतः ये सभी शब्द सर्वनाम हैं।
इस प्रकार, संज्ञा के स्थान पर आने वाले शब्दों को सर्वनाम कहते हैं।
मै, तू, वह, आप, कोई, यह, ये, वे, हम, तुम, कुछ, कौन, क्या, जो, सो, उसका आदि सर्वनाम शब्द हैं।
अन्य सर्वनाम शब्द भी इन्हीं शब्दों से बने हैं, जो लिंग, वचन, कारक की दृष्टि से अपना रूप बदलते हैं;
जैसे- गीता नृत्य करती है।
गीता का गाना भी अच्छा होता है।
राधा गरीबों की मदद करती है।
गीता नृत्य करती है।
उसका गाना भी अच्छा होता है।
वह गरीबों की मदद करती है।
आप- अपना, यह- इस, इसका, वह- उस, उसका।
अन्य उदाहरण
(1)'सुभाष' एक विद्यार्थी है।
(2)वह (सुभाष) रोज स्कूल जाता है।
(3)उसके (सुभाष के) पास सुन्दर कलम है।
(4)उसे (सुभाष को )घूमना बहुत पसन्द है।
उपयुक्त वाक्यों में 'सुभाष' शब्द संज्ञा है तथा इसके स्थान पर वह, उसके, उसे शब्द संज्ञा (सुभाष) के स्थान पर प्रयोग किये गए है।
इसलिए ये सर्वनाम है।
संज्ञा की अपेक्षा सर्वनाम की विलक्षणता यह है कि संज्ञा से जहाँ उसी वस्तु का बोध होता है, जिसका वह (संज्ञा) नाम है, वहाँ सर्वनाम में पूर्वापरसम्बन्ध के अनुसार किसी भी वस्तु का बोध होता है।
'लड़का' कहने से केवल लड़के का बोध होता है, घर, सड़क आदि का बोध नहीं होता; किन्तु 'वह' कहने से पूर्वापरसम्बन्ध के अनुसार ही किसी वस्तु का बोध होता है।
रिफ्लेक्सिव( निजवाचक )सर्वनामों को प्रत्यय स्वयं (एकवचन) या स्वयं (बहुवचन) के अतिरिक्त सरल सर्वनामों जैसे मेरे, आपके, उसके, उसे, यह, और हमारे द्वारा जोड़ा जाता है।
मेरा + स्वयं = स्वयं आपका + स्वयं = स्वयं हमारा + स्वयं = स्वयं उन्हें + खुद = खुद को यह + स्वयं = खुद जब विषय (कर्ता) और कर्म एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है, तो ऑब्जेक्ट (कर्म) के लिए एक रिफ्लेक्सिव सर्वनाम का उपयोग किया जाता है।
जैसे:- मैने अपने आप को काटा।
(यहाँं विषय (कर्ता)और (कर्म) एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है -)
आप खुद को काटते हैं। (यहां विषय (कर्ता) और वस्तु (कर्म) एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है - आप)
उसने खुद को काट दिया। (यहां विषय (कर्ता) और वस्तु (कर्म)एक ही व्यक्ति को सन्दर्भित करती है - वह )
बच्चे खुद को काटते हैं।
हम खुद को काटते हैं।
नोट: जब स्वत्रन्त्र रूप से स्वयं का उपयोग किया जाता है, तो यह एक संज्ञा है और सर्वनाम नहीं है।
एक ईमानदार व्यक्ति अपने आप को सभी व्यर्थों से मुक्त रखता है।
किसी के अलावा किसी के लिए स्वयं का हमेशा महत्वपूर्ण होता है।
इसी के समानान्तरण
प्रभावोत्पादक सर्वनाम (Emphetic Pronoun ) इसका प्रयोग किसी विशेष संज्ञा या कर्ता पर जोर देने के लिए किया जाता है जिसे उन्हें एम्फैटिक (Emphetic Pronoun )सर्वनाम कहा जाता है।
उसने खुद मुझको यह बताया।
मैंने खुद ही नौकरी नहीं छोड़ दी।
उन्होंने स्वयं अपनी गलती स्वीकार की।
हमने खुद की दुर्घटना देखी।
१-प्रतिबिंबित और जबरदस्त सर्वनाम के बीच अन्तर यह है कि यदि विषय की कार्रवाई कर्ता पर प्रतिबिंबित होती है तो एक सर्वनाम एक प्रतिबिंबित( निजवाचक) होता है।
२-दूसरी ओर, भावनात्मक सर्वनाम अथवा जोरदार सर्वनाम, इस कर्ता की कार्रवाई पर जोर देने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
उसने खुद को काट दिया। (Reflexive Pronoun)
यहां विषय और उद्देश्य एक ही व्यक्ति को संदर्भित करती है।)
( Emphetic Pronoun जोरदार सर्वनाम)
यहां जबरदस्त सर्वनाम स्वयं ही उस संज्ञा पर जोर देता है।) उसने खुद केक काट दिया
मैंने खुद प्रिंसिपल से बात की। (जोरदार)
आपको नुकसान के लिए
खुद को दोष देना होगा। (कर्मकर्त्ता)
ध्यान दें कि वाक्य से एक जबरदस्त सर्वनाम हटाया जा सकता है और मूल अर्थ प्रभावित नहीं होगा।
दूसरी तरफ एक रिफ्लेक्सिव ( निजवाचक )सर्वनाम अनिवार्य है।
यदि आप रिफ्लेक्सिव सर्वनाम को हटाते हैं तो वाक्य पूरी तरह से समझ में नहीं आएगा ।
पुरुषवाचक और निश्चयवाचक सर्वनाम को छोड़ शेष सर्वनाम विभक्तिरहित बहुवचन में एकवचन के समान रहते हैं।
सर्वनाम में केवल सात कारक होते है।
सम्बोधन कारक नहीं होता।
कारकों की विभक्तियाँ लगने से सर्वनामों के रूप में विकृति आ जाती है।
जैसे- मैं- मुझको, मुझे, मुझसे, मेरा; तुम- तुम्हें, तुम्हारा; हम- हमें, हमारा; वह- उसने, उसको उसे, उससे, उसमें, उन्होंने, उनको; यह- इसने, इसे, इससे, इन्होंने, इनको, इन्हें, इनसे; कौन- किसने, किसको, किसे।
सर्वनाम की कारक-रचना (रूप-रचना) संज्ञा शब्दों की भाँति ही होती है।
सर्वनाम शब्दों के प्रयोग के समय जब इनमें कारक चिह्नों का प्रयोग करते हैं, तो इनके रूप में परिवर्तन आ जाता है।
('मैं' उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन- बहुवचन कर्ता मैं, मैंने हम, हमने कर्म मुझे, मुझको हमें, हमको करण मुझसे हमसे सम्प्रदान मुझे, मेरे लिए हमें, हमारे लिए अपादान मुझसे हमसे सम्बन्ध मेरा, मेरे, मेरी हमारा, हमारे, हमारी अधिकरण मुझमें, मुझपर हममें, हमपर
('तू', 'तुम' मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन बहुवचन कर्ता तू, तूने तुम, तुमने, तुम लोगों ने कर्म तुझको, तुझे तुम्हें, तुम लोगों को करण तुझसे, तेरे द्वारा तुमसे, तुम्हारे से, तुम लोगों से सम्प्रदान तुझको, तेरे लिए, तुझे तुम्हें, तुम्हारे लिए, तुम लोगों के लिए अपादान तुझसे तुमसे, तुम लोगों से सम्बन्ध तेरा, तेरी, तेरे तुम्हारा-री, तुम लोगों का-की अधिकरण तुझमें, तुझपर तुममें, तुम लोगों में-पर
('वह' अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम)
कारक: - एकवचन बहुवचन कर्ता -वह, उसने वे, उन्होंने कर्म उसे, उसको उन्हें, उनको करण उससे, उसके द्वारा उनसे, उनके द्वारा सम्प्रदान उसको, उसे, उसके लिए उनको, उन्हें, उनके लिए अपादान उससे उनसे सम्बन्ध उसका, उसकी, उसके उनका, उनकी, उनके अधिकरण उसमें, उसपर उनमें, उनपर
('यह' निश्चयवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन बहुवचन कर्ता यह, इसने ये, इन्होंने कर्म इसको, इसे ये, इनको, इन्हें करण. इससे इनसे सम्प्रदान इसे, इसको इन्हें, इनको अपादान इससे इनसे सम्बन्ध इसका, की, के इनका, की, के अधिकरण इसमें, इसपर इनमें, इन पर
('आप' आदरसूचक)
कारक :-एकवचन. बहुवचन कर्ता. आपनेआप लोगों ने कर्म. आपकोआप लोगों को करण. आपसेआप लोगों से सम्प्रदानआपको, के लिएआप लोगों को, के लिए अपादान आपसेआप लोगों से सम्बन्ध आपका, की, के आप लोगों का, की, के अधिकरण आप में, पर आपलोगों में, पर
('कोई' अनिश्चयवाचक सर्वनाम)
कारक:-एकवचन. बहुवचन कर्ता. कोई, किसने. किन्हीं ने कर्म. किसी को. किन्हीं को करण. किसी सेे. किन्हीं से सम्प्रदान किसी को, किसी के लिए किन्हीं को, किन्हीं के लिए अपादान किसी से किन्हीं से सम्बन्ध किसी का, किसी की, किसी के किन्हीं का, किन्हीं की, किन्हीं के अधिकरण किसी में, किसी पर किन्हीं में, किन्हीं पर
('जो' सम्बन्धवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन बहुवचन कर्ता जो, जिसने जो, जिन्होंने कर्म. जिसे, जिसको. जिन्हें, जिनको करण जिससे, जिसके द्वारा जिनसे, जिनके द्वारा सम्प्रदान जिसको, जिसके लिए जिनको, जिनके लिए अपादान जिससे (अलग होने)जिनसे (अलग होने) सम्बन्ध जिसका, जिसकी, जिसके जिनका, जिनकी, जिनके अधिकरण जिसपर, जिसमें जिनपर, जिनमें
('कौन' प्रश्नवाचक सर्वनाम)
कारक :-एकवचन बहुवचन कर्ता. कौन,. किसने. कौन, किन्होंने कर्म. किसे, किसको, किसके किन्हें,. किनको, किनके करण. किससे, किसके द्वारा किनसे, किनके द्वारा सम्प्रदान किसके लिए, किसकोकिनके लिए, किनको अपादान किससे (अलग होने)किनसे (अलग होने) सम्बन्ध किसका, किसकी, किसके किनका, किनकी, किनके अधिकरण किसपर, किसमें किनपर, किनमें
सर्वनाम का पद-परिचय:- सर्वनाम का पद-परिचय करते समय सर्वनाम, सर्वनाम का भेद, पुरुष, लिंग, वचन, कारक और अन्य पदों से उसका सम्बन्ध बताना पड़ता है।
उदाहरण- वह अपना काम करता है।
इस वाक्य में, 'वह' और 'अपना' सर्वनाम है। इनका पद-परिचय होगा- वह- पुरुषवाचक सर्वनाम, अन्य पुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, कर्ताकारक, 'करता है' क्रिया का कर्ता।
अपना- निजवाचक सर्वनाम, अन्यपुरुष, पुल्लिंग, एकवचन, सम्बन्धकारक, 'काम' संज्ञा का विशेषण। एक पारस्परिक सर्वनाम क्या है?
एक पारस्परिक सर्वनाम एक वह सर्वनाम है ।
जिसका उपयोग यह इंगित करने के लिए किया जाता है कि दो या दो से अधिक लोग किसी प्रकार की कार्रवाई कर रहे हैं या दोनों कार्य-वाही के परिणामों या परिणामों को प्राप्त करने के साथ-साथ दोनों कार्य कर रहे हैं।
किसी भी समय कुछ किया जाता है या बदले में दिया जाता है, पारस्परिक सर्वनाम का उपयोग किया जाता है।
किसी भी समय पारस्परिक कार्रवाई व्यक्त की जाती है। जब केवल दो पारस्परिक सर्वनाम हैं।
उनमें से दोनों आपको वाक्यों को सरल बनाने की अनुमति देते हैं।
वे विशेष रूप से उपयोगी होते हैं जब आपको एक ही सामान्य विचार को एक से अधिक बार व्यक्त करने की आवश्यकता होती है।
एक दूसरे एक दूसरे पारस्परिक सर्वनाम उपयोग करने में आसान हैं।
जब आप दो लोगों का सन्दर्भ लेना चाहते हैं, तो आप आम तौर पर "एक-दूसरे का उपयोग करेंगे।
" दो से अधिक लोगों का जिक्र करते समय, उदाहरण के लिए एक व्याख्यान कक्ष में छात्र, आप आम तौर पर "एक दूसरे का उपयोग करेंगे।"
पारस्परिक सर्वनाम (ReciprocalPronouns )
पारस्परिक सर्वनाम के उदाहरण ये सर्वनाम वाक्य के भीतर पुनरावृत्ति को रोकने में मदद करते हैं।
निम्नलिखित उदाहरणों में, पारस्परिक सर्वनाम पहचान की आसानी के लिए इटालिसिस italicize
(तिरछे अक्षर लिखना) किया गया है।
प्रेम और मारिया ने अपने शादी के दिन एक-दूसरे के सोने के छल्ले दिए।
मारिया और प्रेम ने समारोह के अन्त में एक-दूसरे को आलिंगन किया।
टेरी और जैक हॉलवे में एक-दूसरे से बात कर रहे थे।
हम छुट्टियों के दौरान एक दूसरे को उपहार देते हैं।
छात्रों ने अभ्यास भाषण देने के बाद एक-दूसरे को बधाई दी।
बच्चों ने दोपहर बॉल को एक दूसरे को लात मार दिया।
प्रतिवादी ने उन अपराधों के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया जिन पर उनका आरोप लगाया गया था।
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