मनु-स्मृति तथा महाभारत दौनो रचनाऐं समकालिक है
--स्त्रियो यत्र च पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता: ।
अपूजिताश्च यत्रैता: सर्वास्तत्र अफला क्रिया: ।५।
महाभारत अनुशासन पर्व दानधर्म पर्व ४६ वाँ अध्याय।
पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने ।
पुत्राश्च स्थाविरे भावे न स्त्री स्वातन्त्र्यमर्हति ।।१४।
महाभारत अनुशासन पर्व दानधर्म पर्व ४६ वाँ अध्याय
(मनुस्मृति अध्याय ३, श्लोक ५६-६०):
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः ।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः ।।५६।।
[यत्र तु नार्यः पूज्यन्ते तत्र देवताः रमन्ते, यत्र तु एताः न पूज्यन्ते तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति) ।]
जहां स्त्रीजाति का आदर-सम्मान होता है, उनकी आवश्यकताओं-अपेक्षाओं की पूर्ति होती है, उस स्थान, समाज, तथा परिवार पर देवतागण प्रसन्न रहते हैं । जहां ऐसा नहीं होता और उनके प्रति तिरस्कारमय व्यवहार किया जाता है, वहां देवकृपा नहीं रहती है और वहां संपन्न किये गये कार्य सफल नहीं होते हैं ।
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