मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

(यथार्थ के धरातल )


          ब्राह्मण वादी मानसिकता
से प्रेरित होकर ब्राह्मण  शासक पुष्य- मित्र सुंग
के अनुयायीयों द्वारा सृजित धर्म- ग्रन्थों के नाम पर भारतीय संस्कृतियोंमें के विनासक दस्ताबेज़
         विचार-विश्लेण ---योगेश कुमार रोहि
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धर्माचरण से निकृष्ट वर्ण अपने से उत्तम से उत्तम वर्ण को प्राप्त होता है !
जिसके वह योग्य हो। इसी प्रकार अधर्माचरण से पूर्व अर्थात् उत्तम वर्ण वाला मनुष्य अपने से निम्न से निम्न वर्ण को प्राप्त होता है ! और वह उसी वर्ण में गिना जाता है। मनुस्मृति में कहा है – जो शूद्रकुल में उप्तन्न हो के ब्राह्मण के गुण कर्म स्वभाववाला हो वह ब्राह्मण बन जाता है। परन्तु षष्ठम् अध्याय में बहुत सी विक्षिप्तताऐं भी मनु - स्मृति में हैं ! इसी प्रकार ब्राह्मण कुलोत्पन्न होकर भी जिसके गुण कर्म स्वभाव शुद्र के सदृश्य हों वह शुद्र हो जाता है ! मनु १०/६५ चारों वेदों का विद्वान किन्तु चरित्रहीन ब्राह्मण शुद्र से निकृष्ट होता है , अग्निहोत्र करने वाला जितेन्द्रिय ही ब्राह्मण कहलाता है । महाभारत – अनुगीता पर्व ९१/३७ ) ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र सभी तपस्या के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करते हैं , ब्राह्मण और शूद्र का लक्षण करते हुए वन पर्व में कहा है – सत्य दान क्षमा शील अनुशंसता तप और दया जिसमें हों ब्राह्मण होता है ! और जिसमें ये न हों शूद्र कहलाता है। १८०/२१-२६ इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि वर्ण व्यवस्था का आधार गुण कर्म स्वाभाव है। जन्म नहीं और तपस्या करने का अधिकार सबको प्राप्त है। गीता में कहते हैं – ज्ञानी जन विद्या और विनय से भरपूर ब्राह्मण गौ हाथी कुत्ते और चाण्डाल सबको समान भाव से देखते अर्थात सबके प्रति एक जैसा व्यवहार करते हैं । गीता ५/१८ महर्षि वाल्मीकि को रामचन्द्र जी का परिचय देते हुए नारद जी ने बताया – राम श्रेष्ठ सबके साथ सामान व्यवहार करने वाले और सदा प्रिय दृष्टिवाले थे । तब वह तपस्या जैसे शुभकार्य में प्रवृत्त शम्बूक की केवल शुद्र कुल में जन्म लेने के कारण राम हत्या कैसे कर सकते थे ? (बाल कांड १/१६ ) इतना ही नहीं श्री कृष्ण ने कहा ९/१२- ,मेरी शरण में आकर स्त्रियाँ वैश्य शुद्र अन्यतः अन्त्यज आदि पापयोनि तक सभी परम गति अर्थात मोक्ष को प्राप्त करत हें इस प्रकार कहा है ! नि: सन्देह भारतीय सांस्कृतिक ग्रन्थों में ये सम्पूर्ण विक्षिप्तताऐं. ईसा पूर्व १८४---से १४८ के समक्ष पुष्यमित्र सुंग के शासन काल में हुईं हैं --- पुष्यमित्र बुद्ध मत का कट्टर प्रतिद्वन्द्वी तथा श्रवण भिक्षुओं का संहारक था जिसके अपने निर्देशन में ये सिरे से मनु की विचार धाराओं के नाम पर मनु- स्मृति लिख वाई जो शूद्रों की मानसिक तथा तानुसिक स्वतन्त्रता के प्रतिबन्धित करने के लक्ष्य से ____"__""""'_____'_"_""""""'___ लिखा गयी थी जिस पर मनु- की मौहर लगी दी गयी --- इसी जातिगत वर्ण - व्यवस्था के दुष्परिणाम स्वरूप देश में विदेशीयों के आने का अवसर भी मिला । तथा अपने स्वाभिमान तथा अस्मिता की रक्षा के लिए वर्ण-गत जाति व्यवस्था से पीड़ित भारतीय जनता ने सभी इस्लाम तो सभी ईसाई धर्म स्वीकार किया । जिनमें जाट , गुर्जर तथा आभीर नामक यदु समुदाय भी है ! जो कहीं गद्दी हैं तो कहीं अहीर साहब भी कुछ जाटव सक्का के रूप में भी मुसलमान बन गये बुद्ध ,जैन शिक्ख यह तो हिन्दू धर्म की ही विकसित शाखाऐं हैं विकृितियों के और भी स्तर हैं जैसे वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड के १०९ वें सर्ग में राम के समय में बुद्ध का आकस्मिक उदय वाल्मीकि रामायण की प्रमाणिकता के सन्दिग्ध कर्ता है ! देखें ---- यथा हि चौर: स तथा हि बुद्धस्तथागतं नास्तिकमत्र विद्धि " अयोध्या काण्ड १०९ वाँ सर्ग ३४ वाँ श्लोक । यदु आज भी ब्राह्मण वादी मानसिकता के द्वारा धर्म - करें के विधान बनाऐ जाते रहे तो निश्चित रूप से हिन्दू मुट्ठी भर रह जाऐंगे अत: इस मानसिकता के प्रति आन्दोलन रत रहना भी आवश्यकता कर्तव्य करें है !

-विचार- विश्लेषण --- योगेश कुमार रोहि ग्राम - आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद -- अलीगढ़---
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